Thursday, January 24, 2013

Vishnusahastranam

The thousand names of Lord Vishnu are called "Vishnu Sahastranaam" in Sanskrit. The recitation of these holy names with great devotion exterminate many evil effects of past ill deeds and give rise to great qualities in a human and environment. The famous warrior and well known enlightened preceptor in hinduism, Bhishm Pitamah imparted holy knowledge and glories of Vishnu Sahastranaam to Yudhishthar. And the narration between them had been compiled in 149th chapter of Anushasan Parva of Mahabharat.

Vishnu Sahastranam Sloka 1



ॐ विश्वं विष्णुर्वषट्‍कारो भूतभव्यभवत्प्रभुः ।
भूतकृद्भूतभृद्भावो भूतात्मा भूतभावनः ॥।



विश्वं:- जो विश्व रूप हैं

विष्णु :- जो सर्वव्यापक हैं

वषटकार : जो यज्ञ पुरुष हैं , जिनके उद्देश्य से यज्ञ में वषट किया जाता है

भूतभव्यभवत्प्रभु:- जो भूत भविष्य और वर्तमान तीनों कालों के स्वामी हैं

भूतकृत:- जो भूतों (प्राणियों ) की रचना करतें हैं

भूतभृत:- जो भूतों (प्राणियों ) को धारण कर उनका पालन करतें हैं

भाव:- जो भाव स्वरुप हैं

भूतात्मा:- जो सब भूतों की (प्राणियों की) आत्मा हैं

भूतभावन:- जो प्राणियों (भूतों) को भावित करतें हैं

Vishvam :- Universe or Cause of Universe or One who is full in all respects.
Vishnu:- One, who permeates everything, who is inside every sentient and non-sentient being.
Vashatkara:- Who is receiver of everything that is offered as in Puja or Yagya.
Bhuta-bhavya-bhavat-prabhu: Who is the Lord (Prabhu) of the Past (Bhooita), the Future (Bhavya) and the Present (Bhavat).
Bhuta-Krit:- The creator of all beings.
Bhuta-bhrt:- Who protects and maintains everything .
Bhavah:- Pure Existence in all the sentient organisms and the insentient objects, indicated by the term Bhaavah.
Bhutatma:- Atma or soul of all beings.
Bhuta-Bhavanah:- One who nourishes and nurtures all beings to grow.

Vishnu Sahastranam Sloka 2



पूतात्मा परमात्मा च मु्क्तानां परमा गति:।
अव्यय: पुरुष: साक्षी क्षेत्रज्ञोऽक्षर एव च। ।


पूतात्मा :- पवित्रात्मा

परमात्मा :- श्रेष्ठ आत्मा, परम आत्मा

मु्क्तानां परमा गति: :- जो मुक्तों की परम गति है

अव्यय: :- जिनका व्यय नहीं होता

पुरुष: :- जो अनादि पूर्ण पुरुष है

साक्षी :- जो सबके कर्मों के साक्षी हैं

क्षेत्रज्ञ :- जो क्षेत्र के ज्ञाता हैं

अक्षर :- जिनका कभी क्षरण नहीं होता

Poota-atmaa :-Extremely Pure (Pootam) Soul
Parama-atmaa :-The Supreme Soul.
Muktaanaam Paramaa Gatih :- Ultimate goal for liberated/Mukt/released soul.
Avyayah :- The unexpendable.
Purushah:- Existed before anything else/ who completes existence everywhere
Sakshi :- Observer / Witness of all the actions of all.
Kshetragya:- One who knows the body and all the experiences from within the body.

Vishnu Sahastranam Sloka 3



योगो योगाविदां नेता प्रधान पुरुषेश्वर: |
नारसिंहवपु: श्रीमान केशव: पुरुषोत्तम: ||


योगो :- जो योग द्वारा प्राप्य हैं |

योगाविदां नेता :- जो योगियों के नेता हैं |

प्रधान पुरुषेश्वर: :- जो प्रधान पुरुषेश्वर हैं |

नारसिंहवपु: :- जिनके शरीर में मनुष्य व सिंह का समन्वय है |

श्रीमान :- जो श्री युक्त हैं |

केशव: :- जो सुंदर केशों वाले हैं अथवा केशी नामक दैत्य का संहार करने वाले है |

पुरुषोत्तम: :- जो पुरुषों में श्रेष्ठ हैं |

Yogo :- One who can be realized through yoga.
Yoga Vitham Netha :- One who is the leader of all those who know yoga/ one who leads all men of realization.
Pradhana Purusheswarah :- Lord of nature and beings.
Narasimha Vapuh :- One who possesses a body of man and lion combined.
Sriman :- One who is always with Shree (Goddess Laxmi).
Kesavah :- One who possess lovely hairs / he who killed Kesi the demon.
Purushottamah :- The Supreme amongst all individual souls.

Vishnu Sahastranam Sloka 4


सर्व: शर्व: शिव: स्थाणुर्भूतादिर्निधिरव्यय:|
सम्भवो भावनो भर्ता प्रभव: प्रभुरीश्वर: ||



सर्व: :-जो सबको जानने वाले एवं सब कुछ है

शर्व: :-कष्टों को नष्ट करने वाले /जो प्रलय काल में संपूर्ण सृष्टि का संहार
करतें हैं

शिव: :-जो अति शुद्ध हैं , जो शिव हैं सबके कल्याण कारी

स्थाणु :-जो स्थिर हैं

भूतादि :-जो सम्पूर्ण भूतों के आदि कारण हैं

अव्यवो निधि :-जो कभी व्यय न होने वाली निधि हैं

सम्भवो :-जो स्वेच्छा से प्रकट होतें हैं

भावनो :-जो सब भोक्ताओं को कर्मानुसार फल देतें हैं

भर्ता :-जो भरण पोषण करने वाले हैं

प्रभव: :-जिनसे सबकी उत्पत्ति हुई है

प्रभु :-जो सबके स्वामी हैं

ईश्वर :-जो पूर्ण ऐश्वर्यशाली हैं, जो सर्वसमर्थ हैं

Sarvah:- One who is all.
Sharvah:- Who vanishes all sufferings/who destructs the whole creation at its ending point.
Sivah:- One who bestows auspiciousness on all.
Sthaanu:- One who is firm and permanent.
Bhootaadi:- One who is source or cause of all beings.
Avyavo Nidhi:- The inexhaustible treasure.
Sambhavo:- One who manifests himself by his own free will.
BHavno:- One who gives both joy and sorrow to each one according to their good or bad deeds.
Bharta:- One who nurtures and supports all.
Prabhavah:- The Almighty Lord from which even the very concepts of time and space have sprung.
Prabhu:- He who is supreme lord of all.
Ishvar:- One who has supreme grandeur and magnificence and has ability to do anything without help of others.

Vishnu Sahastranam Sloka 5



स्वयंभू: शम्भुरादित्य: पुष्कराक्षो महास्वन: |
अनादिनिधनो धाता विधाता धातुरुत्तम: ||


स्वयंभू: :- जो स्वयं उत्पन्न हुए हैं

शम्भु: :- जो सुख की भावना उत्पन्न करतें हैं/ जो शुभता प्रदान करते हैं

आदित्यः :- जो अदिति के पुत्र हैं / जो सूर्य के रूप में भी प्रकट हैं

पुष्कराक्षो / पुण्डरीकाक्ष : जो कमल के सामान नेत्र वाले हैं

महास्वनः :- जो महान घोष वाले हैं

अनादिनिधनो :- जो जन्म मृत्यु से परे हैं

विधाता :- जो कर्म तथा फल के निर्धारक व करता हैं

धाता :- जो धारण करने वाले हैं

धातुरुत्तम: :- जो धातुओं में सर्वश्रेष्ठ हैं

Svayambhuh:- He who manifests Himself by His own free will.
Shambhuh:- One who causes happiness to everyone/ He who brings auspiciousness
Adityah :-The son of Aditi/ The one who manifested as the sun
Pushkarakshah:- The Lotus-eyed.
Maha-svanah:- He who has venerable sound
Anadi-nidhanah:- One who is without beginning or end.
Dhata:- He who holds and supports all
Vidhata:- The dispenser of fruits of action / One who grants the fruits of action to everyone
Dhaturuttamah:- The superior among all Dhatus

Vishnu Sahastranam Sloka 6


अप्रमेयो हृषीकेश: पद्मनाभोsमरप्रभु: |
विश्वकर्म मनुस्त्वष्टा स्थविष्ठ: स्थविरो ध्रुव: ||



अप्रमेय :-जो प्रत्यक्ष व अनुमानादि के विषय नहीं हैं

हृषीकेशः :-जो समस्त इन्द्रियों को अपने आधीन रखतें हैं

पद्मनाभः :-जिनकी नाभि से कमल उत्पन्न हुआ है जिनकी नाभि में कमल विराजमान है ( यह सृष्टि की उत्पत्ति का द्योतक है )

अमर प्रभु :-जो देवताओं के स्वामी हैं

विश्वकर्मा :-जो विश्व का निर्माण कार्य करतें हैं

मनु :-जिनका मनन किया जाता है , जैसे मंत्र / जो मंत्र रूप में प्रकट होतें हैं व मनन किये जातें हैं

त्वष्टा :-जो संहार के समय सांसारिक पदार्थों को को क्षीण व विलीन कर देते हैं

स्थविष्ठः :-जो अत्यंत स्थूल हैं

स्थविरो ध्रुवः :-जो पुरातन तथा ध्रुव हैं


Aprameya :- Who is not explained, defined or understandable by any of the accepted means of knowledge.
Hrishikesha :- Controller of Sense organs, The Lord of the senses.
Padmanabh :- From whose naval springs the lotus. Whose naval is seat of lotus of creation.
Amarprabhuh :- The lord of Devas, who holds lordship over immortals.
Vishwakarma :- The creator of whole universe and world of objects.
Manu :- Who has manifested as Mantras, who is pondered by Mantras.
Twashta :- Who breaks down the world into subtler elements at the time of dissolution of creation.
Sthavishth :- Who is supremely gross.
Sthavirodhruvah :- Who is Ancient and steadfast.