अग्राह्य: शाश्वत: कृष्णो लोहिताक्ष: प्रतर्दन: ।
प्रभूतस्त्रिककुब्धाम पवित्रं मङ्गलं परम् ॥
अग्राह्य: :- जो किसी के द्वारा ग्रहण नहीं किये जा सकते। जो इन्द्रियों से के द्वारा ग्रहण नहीं किये जा सकते।
शाश्वत: :- जो सदैव विद्यमान रहतें हैं,
कृष्ण: :-जो कृष्ण वर्ण हैं जो सर्व आकर्षक हैं
लोहिताक्ष: :-जो रक्त वर्ण नेत्रों वाले हैं
प्रतर्दन: :-जो प्रलयकाल में सबका विनाश करतें हैं
प्रभूत: :-जो ऐश्वर्यादि गुणों से समृद्ध हैं
त्रिककुब्धाम :-जो तीनों दिशाओं के धाम हैं
पावित्रम् :-जो पवित्र हैं
मंगलं परम :-जो परम मंगल स्वरुप हैं
Agrahyah :-One who is beyond the grasp of others/ One who is beyond the grasp of Indriyas.
Sashvatah :-One who is eternal. Who always remains the same and permanent.
Krishna :-One who has a dark-blue complexion. Who is always full of grandeur and bliss.
Lohitaksh :-One with eyes red like the beautiful lotus flower.
Pratardana :-Who destructs at the time of dissolution.
Prabhutah :-One who is affluent and ever full.
Trikakud Dhama :-existing above, below and in the middle/ existing in all of three realms / who supports of all the three quarters.
Pavitra :-Pure / One who is pure.
Manglam Param :-The embodiment of supreme auspiciousness.
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