अप्रमेयो हृषीकेश: पद्मनाभोsमरप्रभु: |
विश्वकर्म मनुस्त्वष्टा स्थविष्ठ: स्थविरो ध्रुव: ||
अप्रमेय :-जो प्रत्यक्ष व अनुमानादि के विषय नहीं हैं
हृषीकेशः :-जो समस्त इन्द्रियों को अपने आधीन रखतें हैं
पद्मनाभः :-जिनकी नाभि से कमल उत्पन्न हुआ है जिनकी नाभि में कमल विराजमान है ( यह सृष्टि की उत्पत्ति का द्योतक है )
अमर प्रभु :-जो देवताओं के स्वामी हैं
विश्वकर्मा :-जो विश्व का निर्माण कार्य करतें हैं
मनु :-जिनका मनन किया जाता है , जैसे मंत्र / जो मंत्र रूप में प्रकट होतें हैं व मनन किये जातें हैं
त्वष्टा :-जो संहार के समय सांसारिक पदार्थों को को क्षीण व विलीन कर देते हैं
स्थविष्ठः :-जो अत्यंत स्थूल हैं
स्थविरो ध्रुवः :-जो पुरातन तथा ध्रुव हैं
Aprameya :- Who is not explained, defined or understandable by any of the accepted means of knowledge.
Hrishikesha :- Controller of Sense organs, The Lord of the senses.
Padmanabh :- From whose naval springs the lotus. Whose naval is seat of lotus of creation.
Amarprabhuh :- The lord of Devas, who holds lordship over immortals.
Vishwakarma :- The creator of whole universe and world of objects.
Manu :- Who has manifested as Mantras, who is pondered by Mantras.
Twashta :- Who breaks down the world into subtler elements at the time of dissolution of creation.
Sthavishth :- Who is supremely gross.
Sthavirodhruvah :- Who is Ancient and steadfast.
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