Thursday, January 24, 2013

Vishnu Sahastranam Sloka 1



ॐ विश्वं विष्णुर्वषट्‍कारो भूतभव्यभवत्प्रभुः ।
भूतकृद्भूतभृद्भावो भूतात्मा भूतभावनः ॥।



विश्वं:- जो विश्व रूप हैं

विष्णु :- जो सर्वव्यापक हैं

वषटकार : जो यज्ञ पुरुष हैं , जिनके उद्देश्य से यज्ञ में वषट किया जाता है

भूतभव्यभवत्प्रभु:- जो भूत भविष्य और वर्तमान तीनों कालों के स्वामी हैं

भूतकृत:- जो भूतों (प्राणियों ) की रचना करतें हैं

भूतभृत:- जो भूतों (प्राणियों ) को धारण कर उनका पालन करतें हैं

भाव:- जो भाव स्वरुप हैं

भूतात्मा:- जो सब भूतों की (प्राणियों की) आत्मा हैं

भूतभावन:- जो प्राणियों (भूतों) को भावित करतें हैं

Vishvam :- Universe or Cause of Universe or One who is full in all respects.
Vishnu:- One, who permeates everything, who is inside every sentient and non-sentient being.
Vashatkara:- Who is receiver of everything that is offered as in Puja or Yagya.
Bhuta-bhavya-bhavat-prabhu: Who is the Lord (Prabhu) of the Past (Bhooita), the Future (Bhavya) and the Present (Bhavat).
Bhuta-Krit:- The creator of all beings.
Bhuta-bhrt:- Who protects and maintains everything .
Bhavah:- Pure Existence in all the sentient organisms and the insentient objects, indicated by the term Bhaavah.
Bhutatma:- Atma or soul of all beings.
Bhuta-Bhavanah:- One who nourishes and nurtures all beings to grow.

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